Monday, December 27, 2010

क्रेडिट कार्ड या जी का जंजाल


बचपन में घर के बड़े लोगों सो एक कहावत सुनी कि....जितनी चादर हो पैर उतना ही पसारना चाहिए......पर इस कहावत का मतलब समय के साथ-साथ समझ में आने लगा है...क्योकि कोई भी व्यक्ति अपने अनुभवों से ही सिखता है....लेकिन आज ये कहावत सिर्फ निम्न मध्यम वर्ग और छोटे शहरों के लिए ही रह गया है...क्योंकि आज की तेज़ रफतार ज़िंदगी .जल्द अमिर बनने की चाहत और वेस्टर्न कल्चर मनें जीने की ज़िद ने लोगों को मशीन बना दिया है...वो कुछ भी सोचना नहीं चाहते..और जब बात दिखावा करने का हो तो हो शायद एकदम ही नहीं.........मेट्रों कल्चर ने लोगं को आवश्यकता सेअधिक खरीदने का आदी बना दिया है...अगर किसी को दो पैंट खरीदनी है..आर वो शांपिग के लिे मॉल का रूख कर रहा है तो बस क्या पुछना..फिर तो वह अपनी पूर्वनिर्धारित खरीदारी को ताख पर रक कर..जब तक खरीजारी करता है जब तक उसके दोनों हाथ भर जायें......और उसे पर्स निकालने में आसानी न हो...और उसके इस तरह के लाईफस्टाइल के आग में घी का करता है..ये छोटा सा क्रेडिट कार्ड....

जब बात कार्ड की चल गयी है तो इसकी विशेषताओं (कमियां) को भी जान ले.....क्रेडिट कार्ड जो लोगों को कर्ज में जीने का नया लाईफस्टाईल दे रहें है....नहीं नहीं दिमाग पर ज़ोर ना दे मै बताता हूं....क्रेडिट कार्ड ऋण बहुत आम ऋण में से एक है...जिसमें आप आपने आप ही डूब जाते है......सच कहे तो यह एक ऐसी कुल्हाड़ी है ..जिसमें भले ही आप अनजाने में लेकिन मारते रहते है..जब तक आप को दर्द का एहसास नही होता है....और इसके दर्द का एहसास तब होता है..जब क्रेडिट कार्ड से खर्चे रुपये को आप सूद-ब्याज सहित भरते है....आप के द्वारा बिंदासपन से खर्च किये रूपयें को भरने के लिए भी बैंक आप को रिआयत देती है..सबसे पहले तो पैसे ना होने की स्थिती में आप को प्रारम्भिक पैसे आदा करने को कहती है...जो आप को थोड़ी खुशी देता है..लेकिन अगले महिने जुड़कर आने वाला ब्याज आपके होश फाख्ता कर सकता है...क्योकि न्यूनतम राशि भी चुकाने के स्थिती में नही होतें है.....और इसका नतीजा यह होता है कि आप सर से पांव तक केडिट कार्ड ऋण के तले दब जाते है....

और इसके बाद शुरू होता है रिकवरी यमदूतों (एजेंटों) के फोन कॉल का सिलसिला...जो अपके जिन का चैन और रात की नींद को उड़ा देता है..और आप के पास माथा पिटने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचता...इस जगह पर मेरी बचपन में सुनी गयी कहावत चरितार्थ होती है...कि अगर आप चादर से ज्यादा पैर फैलाएगें तो परेशानियों को दावत देंगे....इसलिए हम सब के लिए इस कर्ज रूपी परेशानी से बचने के लिए....कड़वा लेकिन अचूक इलाज है....आप मेरे इन बातों से परेशान हो गये होगें...परन्तु आप परेशान ना हो क्योकि मेरा और आप का साथ सिर्फ कोसने तक का ही नही था.....अगर मैंने आप को परेशानियों से रूबरू कराया है तो आप के दर्द पर मलहम लगाने का फर्ज भी मेरा ही है......बात सिर्फ इतनी सी हैं कि............

मेट्रों शहर में रहवासी ये कोशिश करें कि फालतू के खर्चों से किस तरह से बचा जाय........कोशिश करें कि आप हर महिने प्राप्त होने वाली आय के आधार पर अपने ज़रूरी सामानों की लिस्ट तैयार करें......साथ ही प्राप्त आय में से बचत करने का भी उपाय करें जिनका आप को निकट भविष्य सार्थक निवेश कर सकें.....बचत के साथ-साथ अपने क्रेडिट कार्ड से दूरी बनाने की कोशिश करें.....और डेबिट कार्ड से लगाव बढ़ावें.....जिससे आप के खर्चें आप के जांच के दायरें में रहेंगें...इस तरह आप अनुशासित खर्चे करेंगें और क्रेडिट कार्ड ऋण के बोझ तले दबने से बच जायेंगें...

लेकिन इसका मतलब ये ना समझियेंगा कि मैं आप के क्रेडिट कार्ड से कन्नी काटने को कह रहा हूं...इसकी भी उपस्थिती आप के लिए महत्वपूर्ण है...जो विशेष अवसरों पर आप का साथी बनता है....उदाहरण के तौर पर यदि परिवार का कोई सदस्य अचानक बीमार पड़ जाये...और उसे अस्पताल ले जाना पड़ता है और आस-पास कोई एटीएम ना हो तो ऐसी स्थिति में क्रडिट कार्ड ही उपयोगी साबित होता है...लेकिन फिर भी इसका उपयोग आवश्यकता के हिसाब से ही करें..

क्योंकि जैसे ही आप के हातों में क्रेडिड कार्ड रूपी शक्ति आती है तो मनुष्य अपनी प्रवृत्ति के अनुसार इसका ग़सत इस्तेमाल करना शुरू कर देता हैं...और भस्मासुर की तरह खुद को है भस्म करने लगता हैं.....

इसलिए अभी तक के बातों को एक बार और याद दिलाते हुए ये कहना चाहूंगा कि एस क्रेडिट कार्ड रूपी आधुनिक शक्ति का प्रयोग समय-समय पर आवश्यकता पड़ने पर ही करें..अन्यथा ये क्रेडिट कार्ड का जाल आप के जी के लिये जंजाल बन सकता है...

सौरभ कुमार मिश्र

(मिश्र गोरखपुरिया)

No comments: