Wednesday, February 4, 2009

मुद्रा का एकतरफा बहाव

औद्द्योगिक क्षेत्रों का एक स्वर्णिम समय था। जिस वक्त होटल और रेस्टोरेंटो में चमक, गाड़ियों में रफ्तार व शेयरों में उछाल हुआ करता था। साथ ही साथ अन्य नित नए मुकाम बनते थे। लेकिन वर्ष २००८ के आते ही, ये सब स्वप्न बन गए और यह वर्ष सभी सेक्टरों के लिए दानव का रूप ले के आया, जो अपने मुंह में सभी के लाभों को लीलता चला गया, इन सभी का कारण बनी बनी अमेरिका की आर्थिक मंदी जिसमे उसके दशकों पुराने बैंकों और वित्तीय कंपनियों को गर्त में पहुंचा दिया, उसके इस मंदी रूपी आग का असर अन्य देशों पर भी पड़ता दिखाई दिया, जिससे भारत भी अछूता नहीं रहा, भारत तथा अमेरिका का आयत निर्यात व मुद्रा का चलन दोनों तरफ से होता था, परन्तु अमेरिका में व्याप्त मंदी के कारण भारत से जहाँ व्यापर में कमी आई वहीँ अमेरिका में कार्यरत भारतीय कर्मचारियों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा, परन्तु भारत से अमेरिका जाने वाले धन में कमी नहीं हुयी, क्योंकि जहाँ एक तरफ भारतीय रेस्तरां उद्दोग चौपट हो रहा था वहीँ दूसरी तरफ अमेरिका के रेस्टोरेंट दिन-प्रतिदिन फलते- फूलते रहे, उदहारण के लिए पिज्जा हट की विक्री में पिछले तिमाही के दौरान १०% की वृद्दि हुई तो वहीँ मैकडोनाल्ड में भी चौथी तिमाही में २५-२८% की वृद्दि हुई।इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय फास्टफूड चैन की एक लम्बी लिस्ट है जिसको इस मंदी में भी मुनाफा हो रहा है.
इस प्रकार भारतीय पैसा विदेशों की तरफ बहता जा रहा है जो की इस मंदी में हमारे देश के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता. क्योंकि व्यापारिक संतुलन तभी हो सकता है जब मुद्रा का प्रवाह दोतरफा हो .
सौरभ मिश्र
आर्थिक विश्लेषक