Saturday, April 25, 2009

समाचार या कारोंबार


पहले का दौर पत्रकारिता के सुनहरे युग को दर्शाता हैं, क्योंकि वह समय पत्रकारिता का नवीन दौर था। ख़बरों के लिए दौड़ भाग की जरूरत नहीं थी। पर समय के करवट लेने के साथ-साथ ख़बरों का सिलसिला तेज़ होता गया । जिस तरह समाज में नित नये क्षेत्रों का विकास होता गया तो पत्रकारिता को भी रफ्तार मिलती गयी। क्योंकि जिस तरह क्षेत्रों का जमावड़ा होता गया उसी क्रम में समाचार भी आते गयें । परिणाम यह रहा की पत्रकारिता जो समाज की दशा-दिशा सुधारने का काम कर रहें थें वह इसे कारोबार के रूप में स्वीकार करने लगें। अब समाचार में सत्यता की कमी, मसालों की अधिकता और विज्ञापनों के भरमार होने लगे । समाचारों के बदलते रूप ने बदल रहें समाज को और ज़ोर दिया । अब छोटी पार्टी हो या बड़ी पार्टी , नेता हो या अभिनेता सब एक दूसरे की कमियाँ बताने में कोई कमी नहीं करता । और इसका साथ देते हैं आज के पत्रकार व चैनल। इसका सबसे बड़ा कारण है समाचार का बाज़रवाद । जहाँ पर सभी में समाचार से अधिक विज्ञापनों को पाने की होड़ लगी हैं। और ये तो जाहि़र है कि जो जिसकी खायेगा उसकी ही बोलेगा । तो इस स्थिती में हम साफ सुथरी पत्रकारिता की आस कैसे कर सकते है.। हाँ यह सही बात हैं कि बिना अर्थ पहिया नहीं चल सकता परन्तु समाचारों का पहिया ख़बरों की अर्थ(धरातल) की जगह कारोंबार के अर्थ(मुद्रा) पर चलने लगे तो इसपे आप कि क्या सोंच हैं? आप सोंच रहें होगें कि मैं मिडिया का विरोध कर रहा हूँ। तो ऐसी बात नहीं हैं,मैं आप सब को वही बता रहा हूँ जो आप जनते हैं। मैं भी एक पत्रकार हूँ और सच्चाई से अवगत भी हूँ। समाज की स्थिती को देखकर मैं सबको पूर्णतया गलत नहीं कहता हाँ पर इतना कहता हूँ कि इस हमाम में सब.................?

आपका
सौरभ कु. मिश्र
(एक चिन्तक)