Wednesday, January 27, 2010

नेताओं का व्यवहार और मंहगाई की मार


किसी का हाथ आम जनता के साथ....तो कोई इंडिया शाइनिंग के सगूफे छोड़ता हैं......पर मूल में सभी के एक ही बात सामने आती है...कि देश की सभी पर्टियों का मेन मोटो गरीबों और आम जनता के विकास की ही बात करना है......लेकिन शायद उनकी मजबूरी होती है कि वो चुनाव जीतने के बाद ये सब वादे भूल जाते है.....क्या करे उनकी गलती नहीं बल्कि वो तो पार्टी और अपने नेता परम्परा का निर्वहन करते हैं......भारतीय राजनीति में शायद ऐसी परम्परा बन गयी है कि चुनाव के समय जनता से खूब लुभावने वादे करना और फिर जीतने के बाद वादों को ऐसे भूल जाना.....जैसे गजनी के नायक को हर बाते सिर्फ थोड़े देर ही याद रहती है....अरे मै भी कहां देश के राजनीति में फंसा हूं...मेंडलीफ के आवर्त सारणी के कुछ अपवादों को छोड़ दे तो आज कौन युवा है जो देश के हित की बात सोचता है.....उसे तो बस अपने लाभ से मतलब है..और शायद यही कारण है कि आज देश की ज्वलंत समस्या मंहगाई पर लोग एक साथ खड़े है....और सरकार को उसके किये चुनावी वादे बखूबी याद दिला रहे हैं.....जो भी हो लेकिन उनका ये कदम सराहनीय ही कहा जायेगा.....देश की सरकार तो देश के विकास दर के पीछे भाग रही है...लेकिन इस भागम-भाग में उसे इस बात का इल्म नही कि देश में मंहगाई कहां जा रही है...देश की जनता मंहगाई से कितनी त्रस्त है....उसे तो बस अपना पल्ला झाड़ना अच्छी तरह आता है...एक अपनी गलती को विपक्ष पर थोपता है तो दूसरा सरकार पर ...इस आरोप-प्रत्यारोप के खेल में मंहगाई कब आसमान छूने लगी...इस बात का अंदाजा तब लगा जब इसके विरोध में आम जनता सड़को पर उतरने लगी..बर्दाशत भी कबतक करती....क्योकि छोटी होती थाली के बाद अब फीकी और काली होती चाय को गले से उतारना जनता के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था...भला हो सरकार का जिसने जनता के दर्द को समझा ..और आनन-फानन में बात आर बी आई के कानों तक पहुंचा दी गई....क्या करे जनता समझती है कि देश के आर्थिक डाक्टर यानी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी टीम देश को इस तरह की समस्याओं से उबारने में सक्षम है...लेकिन अंत में कमान सम्भाली आर बी आई ने ही......और मंहगाई पर चलाया अपना पहला ब्रम्हास्त्र सी आर आर....जिसके साथ ही लोगों की नजरे अब इसके सटीक निशाने की ओर गड़ गयी है...सी आर आर बैकों के जमा राशि का वह हिस्सा होता है...जो बैंको को रिर्जव बैक के पास अनिवार्य रूप से रखना पड़ता है....जिसके बाद बैकों के पास तरलता की कमी होती है और लोगो को बढ़े हुए ब्याज दर पर ऋण लेना पड़ता हैं...जो की इस मंहगाई में जनता के लिए तो मुश्किल ही है...अगर अखबारों के पुराने पन्नों को पलटे तो पायेगें कि......9 जनवरी को समाप्त हुए सप्ताह में खाद्य वस्तुओं पर आधारित मुद्रास्फिति की दर 16.81 फीसदी रही.. तो वही थोक मूल्य सूचकांक 7.31 फीसदी रही ....ये आंकड़े गिरावट के बाद के है.....लेकिन इसके बाद भी आम जनता को कोई भी सहूलियत नहीं है...मंहगाई को लेकर उनकी स्थिती ज्यों की त्यों बनी हुई है.... अभी भी थाली छोटी की छोटी है और चाय की कड़वाहट भी बरकरार है... इसी बीच एक खबर आयी कि लोग आमरण अनशन पर जाने को तैयार है...हां जब खाने के लिए घर में राशन ही नहीं होगा तो फिर वो आमरण ही तो कहलाएगा......लेकिन इन सभी कयासों और इस मंहगाई की आग में झुलसी हुई. ये जनता ......आने वाले बजट के मरहम का इंतजार कर रही हैं...कि शायद इस बार कुत्तों के खाने वाले बिस्कुट की जगह.....इंसानों के खाने का राशन सस्ता हो जाये.....
सौरभ कु. मिश्र (मिश्र गोरखपुरिया)
(लेख अखबार और समाचार के खबरों के आधार पर)