Tuesday, September 15, 2009

इक टीस............. विश्वास की !








आज दिल को कुछ हुआ है,
क्या कोई धोखा हुआ है ?
हर तरफ यू शोर है ,
फिर मेरा दिल क्यों मौन है ?
आखिर दिल चाहता क्या है ?
इस दिल में छुपा कौन है ?
दर्द की हर टीस में प्रश्न है,
उतर देने वाला कोई निकट नहीं ,
ये जीवन की है विकट घडी .
क्या जिसको बचपन से चाहा
उसने ही मुझ को छला है?
नहीं-२ ये दिल नहीं मानता तो
मन में कैसा शोर भला है ?
जिसका हाथ पकड़ कर साथ रहा
जिसको दिल ने अपना है कहा,
फिर ये दिल उसी की टीस से
बेजार क्यों होने लगा हैं ?
क्या उसके प्रति विश्वास खोने लगा है ?
जाने क्या हुआ मुझे जो
दिल में ऐसे अशुभ विचार आता है,
मन न जाने किस अनहोनी से घबराता है ?
अब तो ये प्राथना है की,
हे इश्वर !
जिसे जीवन की हर घडी चाहा
उसका प्यार और विश्वास मिले,
दिल में खुशियों की लहर हर रोज़ चले .
आपका
सौरभ मिश्र (गोरखपुरिया )

Friday, September 11, 2009

काश ! वो दिन फिर ...........


याद है वो पढने जाने के लिए सुबह उठ जाना ,
ये तो होता था एक बहाना
क्योकि
यही था अपना एक ठिकाना ,
छप्पन -चौकड़ खेल दिन बिताते थे .
चाचा की चाय पीते
और कैंटीन मे रौब जमाते थे
बातों-बातों मे खूब भोग लगाते थे
कुछ मन -मुटाव,कुछ धूप-छाव
होती रहती थी ,
पर छोड़ फिकर ,संग ले सबको निकला करतें थे
कभी गलियों में,कभी सड़को पे,
कभी होटल -रेस्तरा के भीडो मे
कभी बागो में, कभी बस-ऑटो में
विचरा करतें थे .
वापस आने पर बातें होती दिन- भर की
खाना खाते और बनाते मिल कर के,
अब तो सावन का ये मौसम क्यूँ जाने लगा है ,
पतझर का मौसम देखो क्यों आने लगा है
अब सब जीवन की आपाधापी में यू
उलझ गए ,
रिश्तों की गह्ररी गाठ भी अब जैसे सुलझ गई ,
अब तो कभी -कभी फोन से बातें
और मेल से मेल होता हैं,
दिन अब बिसरे यादों को याद कर के रोता है .
याद है फिर ............
आप सब की यादों में खोया एक मित्र