Monday, March 23, 2009

सहमा कारोंबार और डरी हुई अर्थव्यवस्था.....................!


जब शरीर में कोई व्याधि होती हैं तो वो अपने साथ ओर भी मुश्किलें लें कर आती हैं .
कुछ ऐसा ही हुआ अर्थव्यवस्था के साथ , जब मुद्रास्फिती अपने चरम पे थी तो हम उसके कम होने की बात करते थे। स्फति कम तो हुइ पर अपने साथ नयी समस्या मंदी को ले कर आ गई। जो कुछ ज्यादा ही भयानक रुप लेती जा रही हैं । इस मंदी ने पूरे विश्व में हाहाकार मचा रखा हैं। सच कहें तो पूरी ग्लोबल इकानमी ही इस मंदी राक्षस के
मुंह में समाती जा रही हैं । सरकार नित नये प्रयास करती जा रही हैं पर उसका कुछ खास़ असर नहीं दिखाई देता। और इन सब समस्याओं में घी डालनें का काम कर रहा हैं
यें जेहादी आतंकवाद । जिसकी चपेट में आये हमारे बहुत से उघोग गर्त में जा रहें हैं। आतंकवाद का हौव्वा इतना भयावह हैं कि उसने IPL मैचों पर भी अपना असर दिखा दिया। जिसके परिणाम स्वरुप गृहमंत्रालय ने इसे रद्द करने की ठान ली। मंत्रालय VS बी सी सी आई के इस बहस में IPL मैंचों के आयोंजन से भारत को हाथ धोना पड़ा , जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए पुनः एक दुखद घटना हैं। जिसकी भरपाई के लिए सरकार को अधिक मशक्कत करनी पडे़गी। क्योकिं अर्थव्यवस्था में घटित हो रही घटना
(मंदी) की तुलना यदि हम 1930 से करे तो इसे हम कहीं ज्यादा बड़ा पाते हैं। जिसकी पुष्टि स्वयं वर्ल्ड बैंक के प्रेसिडे़न्ट ने करते हुए कहा हैं कि इस साल अर्थव्यवस्था में 1 से 2 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिल सकती हैं। साथ ही ये बताया कि ‘’दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया में ऐसी बुरी आर्थिक हालत कभी भी देखने को नहीं मिली थी और इसका मतलब है कि हम घोर आर्थिक मंदी के दौर में पहुंच रहें हैं।‘’ भारत भी इस मंदी की चपेट से बचा नहीं हैं ये बात तो सर्वविदित हैं। जिससे कुछ हद तक लड़ने के लिए IPL हमारे पास अच्छा हथियार था । परन्तु इसके सुरक्षा को देखते हुए इसे देश के बाउड्री के बाहर भेजा जा रहा हैं। जो कि अर्थव्यवस्था के लिए तगड़ा झटका हैं। आप सोंच रहें होगें कि IPL किस तरह अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता हैं। तो मैं आप के यादास्त के पन्नों को पलट कर ये याद दिलाना चाहता हूँ कि 26/11 के अनहोनी ने
भारतीय अर्थव्यवस्था के उघोगों को गहरा झटका दिया । इस आग में सबसे ज्यादा होटल, पर्यटन और इससे जुड़े उधोगों को झुलसना पड़ा। इस पर तात्कालिक IPL आयोजन मरहम का काम कर सकता था। परन्तु सरकार के ढुलमुल रवैये ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का जो काम किया हैं निकट समय में उसे स्वंय ही उसकी भरपाई करनी पड़ेगी। इस आयोंजन सें जहाँ सरकार को करोंडों का लाभ होता वही भारतीय मंद पड़े उधोगों कों बूम करने का मौका मिलता । पर यहाँ अब लाभ शब्द का
कोई सारोकार नहीं रहा क्योंकि सरकार के हो रहे करोंड़ो के घाटे के साथ-साथ इस आयोजन से जुड़े सभी उघोग व उघोगपतियों को भी घाटा होने वाला हैं। इसका सीधा प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा । यें वहीं उघोगपति हैं जों बड़ी मात्रा में
अर्थव्यवस्था में निवेश करते हैं। इसके इतर देशवासियों के भावनाओं की भी क्षति होगी।
क्योंकि देशवासियों की यें इच्छा है कि IPL का आयोजन अपने ही देश मे हो। पर देश में ना होना तो दुर्भाग्यपूर्ण तो हैं ही साथ ही इस घटना ने देश की सुरक्षा व्यवस्था पर भी उगली उठाई हैं। कि जब सरकार इन 11 टीमों की सुरक्षा करने में ऊहापोह की स्थति में आ जा रही तो 1 अरब 20करोंड़(लगभग) देशवासियों की सुरक्षा कैंसे करेगीं। यहाँ तो बस यहीं दिखता हैं कि हावी आतंकवाद-डरी राजनीति , डरे लोग, डरा महकमा, सहमा कारोबार और डरी हुई अर्थव्यवस्था.....................!

सौरभ कु. मिश्र
आर्थिक विश्लेशक

Saturday, March 21, 2009

डिफ्लेशन हैं या डिप्रेशन...........?


अर्थव्यवस्था का मिजाज़ भी मौसम की तरह बदलता ही जा रहा हैं। जहाँ चंद दिनों पहले मौसम में ठण्ड़ थी वही आज गर्मी से लोग परेशान हैं। यही कुछ हाल अर्थव्यवस्था
का भी हैं। जहाँ कुछ समय पहले तक तो सरकार मुद्रास्फिती के लगातार बढ़ने से परेशान थी वही गिरने का रिकार्ड बनाने से सकते में आ गई हैं। मुद्रास्फिती की दर बिते सप्ताह में 0.44 प्रतिशत हो गई जो पिछले 14 साल का निम्नतर स्तर हैं। पिछले साल मार्च के महीने में यह दर 7.78 प्रतिशत थी । जहां अर्थशास्त्री मंदी ना होने पर ज़ोर दे रहे थे वही इस गिरावट ने बता दिया कि भारतीय अर्थव्यवस्था भी तीव्र मंदी के
घेरे में आती जा रही हैं। सही मायने में कहे तो आज इंफ्लेशन ने डिफ्लेशन का रुप ले लिया हैं। इसमें जहां एक तरफ तो जनता के लिए थोड़ी खुशी का पल होता हैं वही दूसरी तरफ कारपोरेट सेक्टर के लिए परेशानी का सबब । क्योंकि इसमें कीमत कम होने पर मांग कम हो जाती है क्योंकि उपभोक्ता को लगता है कि अभी कीमत और गिरेगी। माँग ना होने की स्थति में उत्पादक उत्पादन ओर घटा देता हैं । जिसके कारण उसके मुनाफे में कमी होनें लगती हैं जिसकी गाज़ कर्मचारियों पर गिरती । नौकरी ना होने की स्थति में उपभोक्ता की क्रय शक्ति कम होती हैं और यह चक्र तब तक चलता रहता हैं जब तक कि सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम ना उठायें। इस स्थति में सरकार के पास सबसे बड़ा शस्त्र बैंक दर को कम करना होता हैं। परन्तु सोंचने की बात यह हैं कि सरकार पहलें ही सी आर आर और बैंक दर को बहुत कम कर चुकी हैं तो वह अब वह अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए क्या नया प्रयास करेंगी। क्योंकी यह वह स्थति होती हैं जिसके कारण विकास दर में कमी होती जाती हैं और अर्थव्यवस्था र्गत की ओर जाने लगती हैं। सरकार इसके बारे में फिलहाल कुछ सोंच रही हैं या नहीं पर अर्थव्यवस्था के हाल को देखकर डिप्रेशन में आया उत्पादक तो यही सोच रहा हैं कि ये आयी बला डिफ्लेशन हैं या डिप्रेशन...........?
सौरभ कु. मिश्र
आर्थिक विश्लेषक

Tuesday, March 17, 2009

ताकि अर्थव्यवस्था रहे रोगरहित
मंदी की बिमारी तो लाइलाज़ ही होती जा रही है । सरकार इलाज़ पे इलाज़ कर रही है।पर ये रोग तो पूरे विश्व के लिए तो नासूर बनती जा रही हैं। विकास की बात करे तो निराशा ही होती हैं। क्योंकि पिछले कई महीने से तो विकास की गति को तेजी देने वाले सेक्टरों की गति तो स्वयं ही धीमी पड़ गई हैं। रीयल स्टेट से लेकर होटल उघोग तक सभी का कारोबार आस और उम्मीद पर चल रही हैं। परन्तु इस आस को 26/11 के हादसे ने और धूमिल कर दिया। एक तो कोढ़ था उसपर इस हमले ने खाज का काम किया । इस हमले के बाद तो भारतीय पर्यटन और होटल कारोबार की तो जैसे रीढ़ ही टूट गयी। लोग अब सार्वजनिक स्थानों की तुलना में मौज-मस्ती घरों में अधीक पसंद कर रहें हैं। जिससें होटलों की कमाई आधी से भी कम रह गई हैं और साथ ही साथ इससे जुड़े़ सभी कारोबारों को भी गहरा धक्का लगा हैं। सरकार एक को सम्भालती हैं तो दूसरा फिसलनें लगता हैं। जिसकें कारण सेक्टरों का छींका कर्मचारियों पर फूट रहा हैं। नौकरी ना होने से लोंगो की क्रय शक्ति पर असर पड़ रहा हैं वहीं कारखानों में उत्पादित वस्तुओं के लिए सही क्रेता ना मिलने से सामान गोदामों में सड़ रहे हैं जिससें कि कारोबारियों के लिए उत्पादन कम करना मज़बूरी हो रही हैं। जिसका सीधा सम्बन्ध पुनः
कर्मचारियों के नौकरी से हाथ धोने से हैं। इस प्रकार देखा जाय तो ये मंदी का चक्र सभी को अपने घेरे में लिऐ हुए मंदी रुपी बैक्टीरियाँ को फैलाता ही जा रहा हैं। इस लिए सरकार को रोगी सेक्टरों के लिए तत्काल दवा(बूम पैकेज) की व्यवस्था करनी चाहिए । इसके लिए मुद्रा के एक तरफा बहाव को कम करते हुए निर्यात को बढ़ावा देना आवश्यक कार्य हैं। ताकि अर्थव्यवस्था को रोग मुक्त किया जा सकें।

सौरभ कु।मिश्र