Sunday, December 13, 2009

द शो मस्ट गो आन...........


आज महान कलाकार.....और बालीबुड के शोमैन रणबीर राजकपूर जी की......85 वीं जन्मदिन पूरे देश में मनायी जा रही हैं.......राजू......यानि राजकपूर.....जिन्होनें भारतीय सिनेमा को एक नयी दिशा दी....... और बालीबुड को पहुंचा दिया नयी बुलंदियो पर........ पेश है उनके जीवन के सफर पर एक खास रिर्पोट.........
शौमेन राजकपूर आज......बालीबुड के किसी भी कलाकार के लिए भगवान से कम नहीं हैं.......आज भी लोग उनके जीवन के हर पहलू से कुछ ना कुछ सीखते ही रहते हैं..... 14 दिसंबर 1924 को पेशावर में जन्मे रणबीर राजकपूर....जीवन भर अपने पिता के आदर्शो के साथ जिये......जिसने उन्हें बुलंदियों का रास्ता दिखाया......उनके पिता ने उनसे एक बात कही थी कि.....बेटा अगर निचे से शुरू करोगें.....तो बहुत आगे जओगे......और शायद यही वो बात थी.....जिसने राजकपूर साहब को राजू से शौमैन बनाया......
राजकपूर जैसे महान कलाकार ने.....अपने शुरूआती दिन.... रणजीत मूवीटोन से एक अपरेंटिस....और क्लैपर के रूप में शुरू की...... यही क्लैपर बॉय राजू 1947 में केदार शर्मा की फिल्म नीलकमल का नायक बन गया...... इस फिल्म से पहले भी.... राजू अपने हुनर को रजत पटल पर दिखाता रहा......लेकिन फिल्म नीलकमल से शौमैन का.....राजू से राजकपूर बनने का सफ़र शुरू हो गया था.......पहली बार 1948 में.....महज 24 साल की उम्र में.....परदे के पिछे गये........और हिंदी सिनेमा के सबसे युवा फिल्म-निर्देशक के तौर पर सामनें आयें.........बाद में आर के स्टूडियों के नाम से खुद का स्टूडियों शुरू किया...... राजकपूर एक उम्दा निर्देशक..... जो एक बेहतरीन अभिनेता था... निर्माता था... साथ ही साथ गीत-संगीत और तकनीक जैसे न जाने कितने पहलुओं का ज्ञाता था...... जिसकी टीम में मुकेश.... शंकर-जयकिशन,...नर्गिस... मन्ना डे... और शैलेन्द्र जैसे बेहतरीन फनकार थे.....
राजकपूर ने अपने आप को समाज से हमेशा जोड़े रखा...... यही वजह है की उनकी फिल्में प्रगतिशील आन्दोलन की मजबूत धुरी बनीं........ उनके फिल्मों के सफलता की कहानियां तो न जाने हमारी कितनी पीढियां सुनेंगी......सही मायने में राजकपूर एक ऐसा इनसाक्लोपिडियां हैं..... जिसके संग्रह में आग...आवारा... बूट-पोलिश...बरसात...जागते रहो....संगम... मेरा नाम जोकर..... प्रेम-रोग.... और बॉबी जैसी नायब फिल्में हैं......... उनकी फिल्में युवाओं में नर्म दिल को झकझोर देने का माद्दा रखती हैं.........और समाज के निष्ठुर कलेजे पर तीखी चोट भी करती हैं........ उनकी फिल्मों का सन्देश.....और उनकी फिल्मों के गीत लोगों की जुबां पर पीढी-दर-पीढी आगे बढ़ते ही रहते हैं.......
कपूर खानदान ने बेशक इंडस्ट्री को एक से एक नायाब सितारे दिए हैं..... लेकिन इनमें राजकपूर सबसे चमकीले तारे है.....जिनकी रौशनी से ये फिल्म जगत रौशन हो रही हैं......और आगे भी सदियों तक होता रहेगा..... 2 जून 1988 को राजकपूर भले ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया.....लेकिन उनकी फिल्में और उनका काम आज भी यही कह रहा है......... कि द शो मस्ट गो आन...........
सौरभ कु. मिश्र.......(गोरखपुरिया)

Saturday, December 12, 2009

बैंक सार........



कॉलेज के दिनों में एक कहानी सुनी थी.....जिसमें एक बैंक कुछ ही घंटों में ताश के पत्तों की तरह ढह गया.......कहानी कुछ ऐसी थी कि......एक बैंक का चपरासी जिसको अपनी घड़ी पर बहुत भरोसा था...और वह उसी के टाईम से बैंक आता था........एक बार किसी ने उसके घड़ी के साथ किसी ने छेड़खानी कर दी....और टाईम को तीन घंटे आगे कर दिया.....चपरासी रोज़ की तरह की अपनी घड़ी देखकर बैंक आया और अपना काम करने लगा.....काम खत्म करने के बाद उसे लगा कि.... आज क्या बात है...कि मुझे काम खत्म किये घंटे से भी ज्यादा का समय हो गया हैं......लेकिन अभी तक बैंक कर्मचारी नहीं आयें ......कहीं ऐसा तो नहीं कि बैंक का दीवाला निकल गया और कर्मचारी फरार हो गयें.....ऐसा सोंच कर वह चपरासी भी चिल्लाता हुआ भागा कि........बैंक का दीवाला निकल गया...बैंक भाग गया......मुझको धोखा दे दिया......... उस की ये बात जब बैंक ग्राहकों के कानों में पड़ी.... तो उनमें हड़कंप मच गया.....और सब बैंक की तरफ अपना पैसा लेने के लिए भागे..... धिरे-2 ग्राहकों का जमावड़ा लग गया...और सब ने अपने पैसों के लिए तोड़-फोड़ शुरू कर दी.....बैंक कर्मी जब आये और इस नजारें को देखा तो दंग रह गये..... समस्या को जानने के बाद लोगों को समझाने की कोशिश की ...लेकिन तीर कमान मे निकल चुका था.......लाख कोशिशों के बाद भी लोग अपने पैसें के तुरंत भुगतान पर डटे रहे.....परिणाम ये हुआ कि बैंक इतनी जल्दी सभी का भुगतान न कर सका और ताश के पत्तों की तरह ढह गया......
आप सोच रहे होगें की मैंने ये सार आप लोगों के सामनें क्यों रक्खा....तो बात बस इतनी सी हैं.......कि इस समय भी बैंको की स्थिती कुछ ऐसी ही हैं......वो कर्ज, लोन,आदि तमाम तरह से ग्राहकों को मुद्रा का वितरण तो कर देती हैं....लेकिन तत्काल पूरे पैसों का भुगतान नहीं करती.. कोई ना कोई स्कीम के व्दारा ग्राहकों को उलझा कर रखते हैं....और उसी पैसों को चक्रीय क्रिया के साथ आगे बढ़ाते रहते हैं.....मगर सोचिए..... अगर यहां भी कुछ कहानी के तहत ही घट जाये तो............? ये बाते मैं स्वविवेक से बता रहा हूं क्योकि कभी भी.. कहीं भी.. कुछ भी.. हो सकता हैं......तो मेरे इस बक-बक करने का बस इतना सा सार हैं कि..... वर्तमान समय में हम जिस तरह से वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं....... उस स्थिती में जनता से लेकर बैंको तथा नियामक संस्थाओं तक को.... आख,कान और दिमाग खोल कर काम करना पड़ेगा.......
आपका
सौरभ कु. मिश्र(लेखक के स्वविवेक से गढ़ी गयी....)

Friday, December 11, 2009

तेल का उबाल.......


सरकार की मंहगाई कम करने की नीति कुछ ऐसी है...जैसे की गरीबी हटाने की...जिसमें गरीबी तो कम लेकिन गरीब जरूर कम होते जा रहे हैं...... सच कहे तो सरकार अपने ही नीतियों में उलझ कर रह गयी हैं....मुद्रास्फिती है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रही...पर सरकार अपने इन नीतियों के सफाई में बस इतना कह रही हैं कि हम प्रयास कर रहें हैं. पर समझने की बात ये हैं कि सरकार महगाई की आग शांत करने का प्रयास कर रही हैं या फिर आग में घी डालने का.. क्योकि बीते हफ्ते थोक मूल्य सूचकांक बढ़ कर लगभग 20 फीसदी हो गया.....जो मंहगाई को हाथ से निकलता हुआ बता रहा हैं। वही दूसरी तरफ कच्चे तेल के दाम ने इसमें तड़के का काम किया.. जो बढ़कर 140 डालर प्रति बैरल के पार पंहुच गया... जो ये चीख कर बता रहा हैं कि आने वाले समय में महगाई कम तो होने से रही। और अब इस पर भी अगर सरकार मंहगाई कम करने की बात कह रही हैं...तो ये जनता के आखों में धूल झोंकने जैसा ही होगा.
सौरभ कु. मिश्र