मुझे बात याद आती है..जब मै पहली बार भोपाल में आया..शहर जैसा सुना था उससे भी कही ज्यादा सुन्दर था....हर तरफ सिर्फ प्रकृती का खुलापन...ये हरयाली देखकर कोई भी अनायास ही कह पड़ेगा कि...शहर नही जन्नत है...पर समय की सुई जिस तरह आगे बढ़ती गयी..शहर के आबों फिज़ा में जाने कौन सी हवा घुल कि...इसकी ये चौतरफा खुशिया धिरे-धिरे धूमिल पड़ने लगी.....आज जहां एक तरफ अपराध दिन-ब दिन तेजी के साथ अपना पांव पसार रहा है....तो वही सरकार भी विकास के पथ पर इस कदर अग्रसर हो रही है कि...पेड़ों से लेकर घरों तक का अंधाधुंध खात्मा कर रही है..और कारण बन रहा है अतिक्रमण और विकास....शहर में ऐसी कई जगहें थी जहां पर इतने पेंड थे कि..सड़कों तक धूप को आने में काफी मशक्कत करनी पड़ती थी.....लेकिन आज उन सड़को पर धूप ने अपना एक छत्रराज कायम कर लिया है केन्द्र बिन्दु में जो कारण है वो फिर वही विकास की गति और अतिक्रमण......खैर ये तो हुई शहर के पेड़-पौधो का हाल..जिनके बारे में सोचकर मन बहुत दुखी होता है....लेकिन एक बात और है जो इन दिनों दिल में टीस पैदाकर रही है....वो है सरकार के द्वारा चलाया जा रहा अतिक्रमम विरोधी अभियान.......अतिक्रमण को जड़ से मिटाने के लिए सरकार की इस मुहिम में जाने कितने लोगों के आशियाने को तहस नहस कर दिया...लोगों के गाढ़ी कमाई अब धूल फांक रही है....लोग घर से बेघर हो गये...मजबूर है इस चिलचिलाती धूप और खुले आसमान के नीचे जिंदगी गुजर करने के लिए.... तितर बितर पड़े इन सामान को देखकर बेबस ही ये पक्तियां याद आ जाती है कि.....लोग टूट जाते है इक घर बनाने में तुम तरस नही खाते बस्तियां जलाने में..... पर जो बात ज़ेहन में आ रही है....कि कितना अच्छा होता कि सरकार जो चुनाव के समय इन बस्तियों को बसाने की इजाज़त देती है...अगर चुनाव के बाद भी इन्हें वही बसे रहने दे तो .....कितना अच्छा होता कि चुनावी वादों की तरह सरकार इन परिवारों पर कहर गिराना भी भूल जाये....लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि अगर घर उजाड़ने का ही काम करना है... तो फिर बसा कर वाहवाही क्यों लूटना....क्यू कसूरवार बनना इन रोते बिलकते मासूमों और खून के आंसू रोते इन बेघर परिवारों का....क्या चुनाव के बाद सरकार ये बात भूल जाती है कि..... वो इन जनता के दम पर ही......सत्ता की कुर्सी पर आरूढ़ होकर इसका रसास्वादन कर रही है........इस बात पर बशीर बद्र ने क्या खूब लिखा है कि....दुश्मनी करों तो जमकर करों लेकिन इतनी गुंजाइश रहे.....कि अगर दोस्त बन जाये तो शर्मिदा ना होना पड़े.....
SAURABH K. MISHRA
(mishra gorakhpuriya)
3 comments:
हैरानी है कि शिवराज सरकार को भोपाल जैसे खूबसूरत शहर की हरियाली बचाने की फिक्र नहीं है...मिश्रा लिखते रहो...
"शिवराज सिंह जी अपने आप को भोले-भाले और जनता का आदमी कहते हैं पर असल में वे बिल्डरों के मसीहा हैं ,पेड़ों के हत्यारे हैं । जनता के घोर विरोध के चलते ही उन्हें वो प्लान वापस लेना पड़ा जिसमे बड़े तालाब के किनारे कॉलोनी बनाने का प्रस्ताव था ।
अब होशंगाबाद रोड पर एक भी पेड़ नज़र नहीं आता क्योकि उन सब को काट दिया गया है बिल्डर खेतों में मकान बनाए जारहे हैं खूबसूरती के नाम पर सड़कों के बीच में कनेर लगा दिये हैं जो नाधूप देते हैं ना ही फल........"
bahut sundar....yahi dard mera hai shahar ko lekar...
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