Monday, April 12, 2010

भूखे पेट हरि भजन ना होई


शिक्षा सभी के अनिवार्य है..सब पढ़े सब बढ़ा और 6 से 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना...ये ऐसी तमाम बाते है..जिन पर नेता आये दिन राजनीति करते रहते है.....शिक्षा के इस मुद्दे पर इतनी बार बहस हो चुका है..कि अब ये खास मुद्दा आम हो गया है....देश में इसी तरह के बहुत से मुद्दे है..जिन पर नेतागण इस तरह की वोट की राजनीती करते है जिसके चलते जनता के ये बहुत ही खास मुद्दे आम बन कर रह जाते है....एक ऐसा ही वोट बैंक को बढाने वाला मामला भूखमरी का ....जो नेताओं के बीच खासा लोकप्रिय भी है........जो आये दिन धुए की तरह दिखाइ तो देता है...लेकिन बादल बन कर गायब भी हो जाता है...सच कहें तो ये मुद्दा भी मौसमी हो चुका है....लेकिन वाकई इस बात पर गहराई के साथ विचार करें तो...ये काफी विभत्स रूप में हमारे सामने खड़ा हो रहा है....मैंने एक लेख पढ़ा था जिसमें पूरे विश्व को भूखों की दुनिया से नवाजा गया था...सच्चाई भी यही कहती है...क्योकि सरकार हर क्षेत्र की उन्नति के लिए तमाम उपाय करती है लेकिन....जाने ये लोग (मंत्री और आला अफसर) किसने भूखे है कि....रोटी से लेकर चारा तक को हजम कर जाते है। और जिन तक पहुंचना होता है वहां तक नहीं जा पाता है.....
भूख जो इंसानी रूह को कपा देती है। भूख जो अच्छे व्यक्ति को बुरा बनने पर मजबूर कर देती है। भूख ही है जो संसार में असंतोष के बीज पैदा करती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं विश्व में फैले भूखमरी की। जिसने सभी देशों में हाहाकार मचा कर रख दिया है...जिसके चलते विकास के सारे दावे फेल हो रहे है। 2009 में आये आकड़ों की बात करे तो भूखमरी से विश्व के लगभग 1 अरब लोगों को लील लिया. जिसमें से करीब 1 करोड़ तो भारत के ही है। ये आकड़े नेताओं द्वारा चुनाव में किये गये बड़े-बड़े वादो और घोषणाओं की पोल खोलते है। साथ ही भ्रष्टाचारियों के मुंह पर करारा तमाचा भी मार रहे है। सबसे ज्यादा कम वजन के बच्चे,सबसे अधिक कुपोषित नौनिहाल,बेरोजगार,और गरीबों की फौज से भरा पड़ा ये भारत देश वाकई अतुल्य भारत कहा जाना चाहिए। सरकार की नीतियों और भ्रष्ट्राचारियों के कारण गरीरों और अमीरों के बीच की खाई इतनी गहरी हो गयी है कि इसे पाटना नामुमकिन है। सच्चाई तो यह है कि विश्व की कुल भूखी आबादी का ज्यादादर हिस्सा विकासशील देशों में गुजर बसर कर रहा है। करीब 65प्रतिशत से ज्यादा भूखे-नंगे लोग सिर्फ इन देशों बाग्लादेश,भारत,चीन,इंडोनेशिया,और पाकिस्तान में शामिल है। शायद यह सब इन देशों के लिए किसी उपलब्धि से कम नही है।
चौड़ी सड़के. चमचमाती कोरों की कतार,ग्रहों तक पहुंचने की होड़.शेयर बाजार की उछाल,मॉल का धमाल,आर्थिक विकास दर को पाने की ललक शायद यही सब तो है प्रगति के सूचक। तो वही सूखा और बाढ़ ,बढ़ती गरीबी और भूखमरी का शिकार होते लोग, साथ ही आसमान छूती मंहगाई,आत्हत्या करते किसान,आतंकवाद,नक्सलवाद,लिंग भेद आदि ऐसे तमाम मामले है ..जो अंतराष्ट्रीय मंचों पर देश की मट्टी पलीद करने के लिए काफी है। जब हम बात भूखमरी की कर रहे है तो उपज और जनसंख्या को दरकिनार तो कर ही नहीं सकते है।पिछले एक दशक से अनाज का उत्पादन उतना ही बना हुआ है। साल 1990-91 के सालो में कुल उत्पादन 17.64 करोड़ था। जो दो दशक के बाद 22.98 करोड़ रहा है। यानि इन बास सालों के दौरान जहां जनसंख्या 1.5 करोड़ वार्षिक की दर से बढ़ बढ़ रहा है तो वही अनाज का उत्पादन नगण्य रहा। सरकार की तो पूछो ही मत....आम जनता की सबसे बड़ी हितैषी बनने का दावा करती है..तमाम नीतियां, योजनाओं, घोषणाओं का अम्बार लगा देती है। लेकिन उसके बावजूद भी चालू किये गये तमाम योजनाओं के निष्कर्ष टॉय-टॉय फिस्स होता है। सरकार ने बेरोजगारी दूर करने के तमाम योजनायें लाती है..जैसे महात्मां गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना, काम के बदले आनाज की योजना लेकिन इन सभी योजनाओं पर गौर फरमायें तो ये सभी भ्रष्टाचार के दानव को बलि की भेंट चढ़ गयी। गांधी जी ने एक बात कही थी कि भूखों के लिए रोटी ही भगवान है..संविधान में भी इस बात को कहा गया हा कि पृथ्वी पर पैदा होने वाले हर इंसान को भोजन प्राप्त करने का अधिकार है....लेकिन वर्तमान वैश्विक हालात को देखते हुए तो ऐसा ही कहा जा सकता है कि..पैसा जिसके पास है,भोजन उसके हाथ है...।आज भ्रष्ट्राचार बढ़ती भूखमरी,बेरोजगारी को देखकर ज़ेहन में एक ही बात कौधती है कि आखिर इसका हल क्या होगा? क्योकि भूखे पेट तो हरि भजन नहीं हो सकता । तो फिर समाज, देश की उन्नति कैसे की जायेगी.?आने वाले दिनों में अगर भारत को महाशक्ति के रूप में सामने आना है तो उसे अपने बुनियादे ढ़ाचे पर अधिक मजबूती के साथ ध्यान देना होगा। जब पेट में कुछ जायेगा तो ही आवाज बाहर आयेगी और देश राष्ट्र की बात भी की जायेगी...क्योंकि जिन्दगी बहुत अनमोल है..औऱ हर जीवन का आपना एक उद्देश्य है...
जय हिंद जय भारत सौरभ कुमार मिश्र
(मिश्र गोरखपुरिया)

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