Saturday, December 12, 2009

बैंक सार........



कॉलेज के दिनों में एक कहानी सुनी थी.....जिसमें एक बैंक कुछ ही घंटों में ताश के पत्तों की तरह ढह गया.......कहानी कुछ ऐसी थी कि......एक बैंक का चपरासी जिसको अपनी घड़ी पर बहुत भरोसा था...और वह उसी के टाईम से बैंक आता था........एक बार किसी ने उसके घड़ी के साथ किसी ने छेड़खानी कर दी....और टाईम को तीन घंटे आगे कर दिया.....चपरासी रोज़ की तरह की अपनी घड़ी देखकर बैंक आया और अपना काम करने लगा.....काम खत्म करने के बाद उसे लगा कि.... आज क्या बात है...कि मुझे काम खत्म किये घंटे से भी ज्यादा का समय हो गया हैं......लेकिन अभी तक बैंक कर्मचारी नहीं आयें ......कहीं ऐसा तो नहीं कि बैंक का दीवाला निकल गया और कर्मचारी फरार हो गयें.....ऐसा सोंच कर वह चपरासी भी चिल्लाता हुआ भागा कि........बैंक का दीवाला निकल गया...बैंक भाग गया......मुझको धोखा दे दिया......... उस की ये बात जब बैंक ग्राहकों के कानों में पड़ी.... तो उनमें हड़कंप मच गया.....और सब बैंक की तरफ अपना पैसा लेने के लिए भागे..... धिरे-2 ग्राहकों का जमावड़ा लग गया...और सब ने अपने पैसों के लिए तोड़-फोड़ शुरू कर दी.....बैंक कर्मी जब आये और इस नजारें को देखा तो दंग रह गये..... समस्या को जानने के बाद लोगों को समझाने की कोशिश की ...लेकिन तीर कमान मे निकल चुका था.......लाख कोशिशों के बाद भी लोग अपने पैसें के तुरंत भुगतान पर डटे रहे.....परिणाम ये हुआ कि बैंक इतनी जल्दी सभी का भुगतान न कर सका और ताश के पत्तों की तरह ढह गया......
आप सोच रहे होगें की मैंने ये सार आप लोगों के सामनें क्यों रक्खा....तो बात बस इतनी सी हैं.......कि इस समय भी बैंको की स्थिती कुछ ऐसी ही हैं......वो कर्ज, लोन,आदि तमाम तरह से ग्राहकों को मुद्रा का वितरण तो कर देती हैं....लेकिन तत्काल पूरे पैसों का भुगतान नहीं करती.. कोई ना कोई स्कीम के व्दारा ग्राहकों को उलझा कर रखते हैं....और उसी पैसों को चक्रीय क्रिया के साथ आगे बढ़ाते रहते हैं.....मगर सोचिए..... अगर यहां भी कुछ कहानी के तहत ही घट जाये तो............? ये बाते मैं स्वविवेक से बता रहा हूं क्योकि कभी भी.. कहीं भी.. कुछ भी.. हो सकता हैं......तो मेरे इस बक-बक करने का बस इतना सा सार हैं कि..... वर्तमान समय में हम जिस तरह से वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं....... उस स्थिती में जनता से लेकर बैंको तथा नियामक संस्थाओं तक को.... आख,कान और दिमाग खोल कर काम करना पड़ेगा.......
आपका
सौरभ कु. मिश्र(लेखक के स्वविवेक से गढ़ी गयी....)

1 comment:

सतीश पंचम said...

एक अफवाह के रूप में टाईम बम फटने की देर होती है, बस फिर देखिये कैसे कैसे गुल खिलते हैं इस तरह के मामलों में।
बढिया लिखा ।