Saturday, March 21, 2009

डिफ्लेशन हैं या डिप्रेशन...........?


अर्थव्यवस्था का मिजाज़ भी मौसम की तरह बदलता ही जा रहा हैं। जहाँ चंद दिनों पहले मौसम में ठण्ड़ थी वही आज गर्मी से लोग परेशान हैं। यही कुछ हाल अर्थव्यवस्था
का भी हैं। जहाँ कुछ समय पहले तक तो सरकार मुद्रास्फिती के लगातार बढ़ने से परेशान थी वही गिरने का रिकार्ड बनाने से सकते में आ गई हैं। मुद्रास्फिती की दर बिते सप्ताह में 0.44 प्रतिशत हो गई जो पिछले 14 साल का निम्नतर स्तर हैं। पिछले साल मार्च के महीने में यह दर 7.78 प्रतिशत थी । जहां अर्थशास्त्री मंदी ना होने पर ज़ोर दे रहे थे वही इस गिरावट ने बता दिया कि भारतीय अर्थव्यवस्था भी तीव्र मंदी के
घेरे में आती जा रही हैं। सही मायने में कहे तो आज इंफ्लेशन ने डिफ्लेशन का रुप ले लिया हैं। इसमें जहां एक तरफ तो जनता के लिए थोड़ी खुशी का पल होता हैं वही दूसरी तरफ कारपोरेट सेक्टर के लिए परेशानी का सबब । क्योंकि इसमें कीमत कम होने पर मांग कम हो जाती है क्योंकि उपभोक्ता को लगता है कि अभी कीमत और गिरेगी। माँग ना होने की स्थति में उत्पादक उत्पादन ओर घटा देता हैं । जिसके कारण उसके मुनाफे में कमी होनें लगती हैं जिसकी गाज़ कर्मचारियों पर गिरती । नौकरी ना होने की स्थति में उपभोक्ता की क्रय शक्ति कम होती हैं और यह चक्र तब तक चलता रहता हैं जब तक कि सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम ना उठायें। इस स्थति में सरकार के पास सबसे बड़ा शस्त्र बैंक दर को कम करना होता हैं। परन्तु सोंचने की बात यह हैं कि सरकार पहलें ही सी आर आर और बैंक दर को बहुत कम कर चुकी हैं तो वह अब वह अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए क्या नया प्रयास करेंगी। क्योंकी यह वह स्थति होती हैं जिसके कारण विकास दर में कमी होती जाती हैं और अर्थव्यवस्था र्गत की ओर जाने लगती हैं। सरकार इसके बारे में फिलहाल कुछ सोंच रही हैं या नहीं पर अर्थव्यवस्था के हाल को देखकर डिप्रेशन में आया उत्पादक तो यही सोच रहा हैं कि ये आयी बला डिफ्लेशन हैं या डिप्रेशन...........?
सौरभ कु. मिश्र
आर्थिक विश्लेषक

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