Tuesday, March 17, 2009

ताकि अर्थव्यवस्था रहे रोगरहित
मंदी की बिमारी तो लाइलाज़ ही होती जा रही है । सरकार इलाज़ पे इलाज़ कर रही है।पर ये रोग तो पूरे विश्व के लिए तो नासूर बनती जा रही हैं। विकास की बात करे तो निराशा ही होती हैं। क्योंकि पिछले कई महीने से तो विकास की गति को तेजी देने वाले सेक्टरों की गति तो स्वयं ही धीमी पड़ गई हैं। रीयल स्टेट से लेकर होटल उघोग तक सभी का कारोबार आस और उम्मीद पर चल रही हैं। परन्तु इस आस को 26/11 के हादसे ने और धूमिल कर दिया। एक तो कोढ़ था उसपर इस हमले ने खाज का काम किया । इस हमले के बाद तो भारतीय पर्यटन और होटल कारोबार की तो जैसे रीढ़ ही टूट गयी। लोग अब सार्वजनिक स्थानों की तुलना में मौज-मस्ती घरों में अधीक पसंद कर रहें हैं। जिससें होटलों की कमाई आधी से भी कम रह गई हैं और साथ ही साथ इससे जुड़े़ सभी कारोबारों को भी गहरा धक्का लगा हैं। सरकार एक को सम्भालती हैं तो दूसरा फिसलनें लगता हैं। जिसकें कारण सेक्टरों का छींका कर्मचारियों पर फूट रहा हैं। नौकरी ना होने से लोंगो की क्रय शक्ति पर असर पड़ रहा हैं वहीं कारखानों में उत्पादित वस्तुओं के लिए सही क्रेता ना मिलने से सामान गोदामों में सड़ रहे हैं जिससें कि कारोबारियों के लिए उत्पादन कम करना मज़बूरी हो रही हैं। जिसका सीधा सम्बन्ध पुनः
कर्मचारियों के नौकरी से हाथ धोने से हैं। इस प्रकार देखा जाय तो ये मंदी का चक्र सभी को अपने घेरे में लिऐ हुए मंदी रुपी बैक्टीरियाँ को फैलाता ही जा रहा हैं। इस लिए सरकार को रोगी सेक्टरों के लिए तत्काल दवा(बूम पैकेज) की व्यवस्था करनी चाहिए । इसके लिए मुद्रा के एक तरफा बहाव को कम करते हुए निर्यात को बढ़ावा देना आवश्यक कार्य हैं। ताकि अर्थव्यवस्था को रोग मुक्त किया जा सकें।

सौरभ कु।मिश्र

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