Friday, August 24, 2012

पत्रकारिता = चाटुकारिता (पौराणिक कथा)


एक बार एक वरिष्ठ पत्रकार अपने नौकरी के व्यवस्थित रूटीन तथा अपने बॉस से परेशान होकर फूट-फूट कर रो रहा था। और जोर जोर से चिल्ला रहा था हे ब्रम्ह देव मदद करें। हे ब्रम्ह देव मदद करें। उसके इस प्रकार के करूण क्रूदन को सुनकर ब्रह्म देव आने की बहुत कोशिश कर रहे थे लेकिन पत्नी के किसी जरूरी काम के कारण वो आ नहीं पा रहे था। अत उन्होने अपने मानस पुत्र और प्रथम पत्रकार (जिन्होने इस तरह के प्रोफेशन का कीड़ सबको कटाया) नारद जी को उसके कष्ट को दूर करने के लिए भेजा। उनके इस आदेश को सुनकर पहले तो नारद थोड़ा सकुचाए, क्योकि वो तो इस पत्रकारिता नामक पेशे से भली भांति परिचित थे, साथ ही उस पत्रकार के रोने का कारण भी जानते थे। फिर भी वो ब्रम्ह दे के कहने पर उससे मिलने धरती पर आए। और उससे दिखाने के लिए रोने का करण पूछा। नारद जी को देखकर पहले तो वो पत्रकार बिफर गया फिर शांत होकर अपनी व्यथा सुनाई।  जब उसने अपनी व्यथा का प्रारंभ किया तो वो यह भूल गया कि सामने भगवान है और अपने पेशे और बॉस को प्रबंधन की मां.........बहन......करते हुए अपनी बात कहने लगा।
और कहने लगा कि मैं इतना बछठा लिखा डिग्री होल्डर लोग मुझे समझदारी का पिटारा कहते है उसके बाद भी यह मेरे मूर्ख बॉस मुझे कुछ नहीं समझता और अपनी ही जोते रहता है, मुझसे अपना ज्ञान बघारता रहता है। मेरी ऐसी तैसी करता रहता है। क्या करू आप ही कुछ बताइए प्रभु। ऐसी स्थिति में नारद ने उनको रोका और कहा कि भाई तुममे चाटुकारिता की कमी है, इसी के कारण तुम्हारे जीवन में मलाई खाने के योग नहीं है। और इसमें बहुत हद तक हर बात पर वरदान बांटने वाले भगवान की गलती है, और इसकी नींव तो बहुत पहले ही रखी जा चुकी थी। इसके पीछे एक पुरानी कथा है ध्यान से सुनो......
कलयुग के शुरूआती दौर में जब तारो तरफ इस तरह कीपरेशानियों ने जन्म नहीं लिया था, तक एक घोर मूर्ख व्यक्ति की मुत्यु हुई। जिसपर दया खा कर भगवान ने उसकी ड्यूटी ब्रम्ह देव के पास लगा दी। चूंकि वो मूर्ख था उसे करना तो कुछ आता नहीं था अत उसने डयूटी ज्वांइन करने के साथ ब्रम्ह दे की चरण वंदना और पीछे-पीछे लग गया और बहुत वर्षों तक घोर चाटुकारिता का परिचय दिया। उसके इस व्यवहार से प्रसंन्न होकर देव ने उसे वरदान दिया कि हे मूर्खों मे श्रेष्ठ हे मूर्ख मै तुम्हारे इस चाटुकारिता धर्म से बहुत प्रसन्न हूं। इसलिए तुम्हे और तुम्हारे जैसे सभी मूर्खों को वरदान देता हूं कि जब कलयुग अपने चरम पे होगा, तब तुम जैसे मूर्ख चांदी काटोगे। उस समय एक पेशा अपने चरम पर होगा जिसका नाम होगा पत्रकारिता जिसमें कार्यकरने वाले लोग मेहनत और कछिन पढञाई कर के आएंगे। उनमें बौधिक स्तर बहुत अधिक होगा।
वह पूरी दुनियों को सूचना देगें और उनका मूल कार्य पढ़ने लिखने का होगा। लेकिन वे जिस संस्थान में काम करेगें उस के मालिक तुम जैसे मूर्ख होगें। क्योकि उस चरम कलयुग में तुम मूर्खों के पास अकूत धन होगा, जिसके पल पर तुम अपने तरीके से सूचनाओं को तितर-बितर करोगें, भले ही तुमको उसके बारे में कोई त्रान हो या ना हो। और जो भी कर्मचारी तुम्हारी चरण वंदना यानि चाटुकारिता करेगा वो तुम्हारा खास और उसका जीवन लगातार तरक्की को प्रप्त होगा। और जो उसके विपरीत करेगा वो अपना खुद समझ ले। इस प्रकार तुम मूर्खों का इस समाज के बौधिक संस्थान पर पूर्ण वर्चस्व होगा। और तभी से प्रकारिता इस प्रकार का मूर्खों की जरूरी और मजबूरी स्वरूप चाटुकारिता करने का संस्कार आ गया।
हे बुद्धि के धनी पत्रकार महोदय तुम बस अपने ज्ञान पर भरोसा करते हुए चाटुकारिता को तवज्जु नहीं दिया इसी लिए आज तुम परेशान हो। यही नहीं स्वर्ग में भी पत्रकारिता खराब हो गई है, मैने भी यह पेशा छोड़ दिया है। अत मित्र अब यह रोना छोड़ों और मूर्खों की चाटुकारिता वाली पत्रकारिता प्रारंभ करो, इसी में तुम्हारी भलाई है। और ऐसा गूढ़ ज्ञान उस पत्रकार को देने के बाद भगवान नारद नारायण नारायण कहते हुए अंतरध्यान हो गए।
और उस पत्रकार के लिए आगे बढ़ने का रास्ता बता दिया। और उसने उस मार्ग को अपना कर अपना जीवन मलाईदार बनाया। अत पत्रकारो का जीवन क्रीमी बनाने के लिए घोर कलयुगी प्रकारिता में यह एक सीख है। जैसे उनके दिन फिरे वैसे सभी के फिरे। नारायण नारायण.

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