Saturday, May 9, 2009

ये आम ख़ास हें

आज पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिग व मंदी बहुत बड़ा चिन्तन का मुद्दा बन गया हैं। शेयर बाज़ारों का गिरना, बाज़ार का बिखरना इकनामिस्टस के लिए चिन्ता का विषय बना हुआ हैं। बाज़ार के सभी बड़े महारथी इस मंदी की महिमा गाते नहीं थक रहें । इस बैंल व भालू के पूश्तैनी लड़ाई में जहाँ कभी बैंल राजा था आज रंक बनता दिख रहा हैं। क्योंकी भालू मंदी के रथ पर सवार हैं। इससे उबरने के लिए उत्पादक हर सम्भव प्रयास करने से नहीं चूक रहा हैं। सरकार भी कमजो़र सेक्टरों के लिए टाँनिक (पैकेज) की व्यवस्था कर रही हैं। जिसके परिणामस्वरूप बाजा़र की स्थिती में सुधार देखा जा रहा हैं।
जो निवेश व त्वरण के साझा कार्यक्रम से ठीक हो जायेगी। पर जो ठीक ना हो पा रहा हैं वह हैं आम जनता का दर्द । बाजा़रो को नयी गति के लिए सरकार व उत्पादक पूरा दम झोंक रहें हैं पर क्या ये बात जे़हन में है कि झोंकें की तपीश आम जनता को अधिक झेलनी पड़ रही हैं। नये घर,नये शापिंग माँल और तमाम ऐशो-आराम का निर्माण हो रहा है पर इन सब से आम जनता को क्या फायदा। उसके पास इतना कुछ नहीं की वह यहाँ निवेश करे। उसकी तो इस भागम- भाग जिन्दगी में यह इच्छा हैं कि वह परिवार का जीवन निर्वाह सही से करा सके। अपने परिवार को घूमा सके, मौसमी फल व सब्जियां खिला सके, छुट्टी के दिन घूम सके और क्या। पर आज हम अर्थव्यवस्था के इन बड़े समस्याओ में इस क़दर उलझे हैं कि आम जनता के हाथ से आलू और आम दूर जा रहे हैं इसका भी हमें ध्यान नहीं ।जी हाँ आप को सुनकर ये लग रहा होगा कि आलू और आम ? तो हाँ यह सच है फलों का राजा आम के दाम मौसम के बाद भी इतने ऊँचे है कि आम जनता के हाथों तक अभी नहीं पहुंच पा रहें हैं। ये शायद हमारे आर्थिक तरक्की को दिखाता हैं। कि हम किस कदर तरक्की की भाषा में उलझ गये हैं कि आम जनता का फल आम कब खा़स बन गया कुछ पता ही नहीं चला...................।

सौरभ कु.मिश्र
(आम नागरिक
)

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